Physics in Ancient India
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काल परिमेयत्व


समय की इकाईयाँ (Units of Time)
तारों, सूर्य, चन्द्रमा और अन्य ग्रहों के गमन कर्म (Motion) और गणितीय व्युत्पत्तियों के आधार पर 'सूर्य सिद्धान्त' काल (Time) के मापन की नौ पद्धतियों का विवेचन करता है।
तद्नुसार काल की नौ इकाईयाँ हैं। 1
इनके नाम इस प्रकार हैं-'ब्राह्म', 'दिव्य', 'त्रिज्या', 'प्राजापत्य', 'गौरव', 'सौर', 'सावन', 'चान्द्र' और 'आर्क्ष'।
प्रथम छ: इकाइयों 'ब्राह्म से सौर पर्यन्त' का प्रयोग ब्रह्माण्ड के आविर्भाव से व्यतीत होने वाले काल (समय) को परिभाषित करने में किया गया है। चान्द्रमान का उपयोग दैनन्दिनदर्शिका पंचांग के निर्माण में होता है, जिससे विभिन्न संस्कारों तथा त्योहारों का निर्धारण किया जाता है। सावन दिन (Solar day) और नाक्षत्र दिन (Sidereal day) का उपयोग ग्रहों की गति (Planetary motion) की गणना में किया जाता है। आधुनिक भौतिक विज्ञान के इस युग में भी हमने समय की इन दो इकाइयों (Units) को महत्त्व दिया है। 'सावन दिन' अपनी उपयोगिता के कारण दोनों पद्धतियों (वैशेषिक एवं भौतिकी) में काल (Time) के मापन का ठोस एवं उत्तम आधार तैयार करता है।
प्राचीन भारतीय पद्धति में काल (Time) की इकाई का विभाजन और उपविभाजन अधोलिखित प्रकार से होता है-
६० विपल=१ पल
६० पल=१ घटी (नाडी/दण्ड)
२१/२ घटी=१ होरा (hour)
२४ होरा =१ सावन दिन
आधुनिक समय में हम काल (समय) का विभाजन तथा उपविभाजन निम्न प्रकार से करते हैं-
६० सेकेण्ड=१ मिनट
६० मिनट=१ घण्टा
२४ घण्टा=१ दिन (Solar day)
भारतीय ज्योतिष में ग्रह-गमन, के अर्थ में, जो भी पिण्ड अंतरिक्ष में नक्षत्रों के सापेक्ष हमें गति करते दिखते हैं वे ग्रह कहलाते हैं। ग्रह का शाब्दिक अर्थ प्लैनेट (Planet) के रूप में व्यवहार ज्योतिष की दृष्टि से असंगत है।
काल (समय) की इकाई (Unit) होरा (जो घण्टा : Hour के समतुल्य है) साप्ताहिक दिनों के नामों की व्यवस्था प्रदान करता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रत्येक होरा (घण्टा) ग्रहनामों के अनुक्रम में पुकारी जाती है। यंत्र साधन के बिना सामान्य दृष्टि से दिखलाई पड़ने वाले ग्रह सात हैं। सूर्य परिवार के इन ग्रहों को हम शनि (Saturn), बृहस्पति (Jupiter), मंगल (Mass), सोम (पृथ्वी का उपग्रह:Moon), शुक्र (Venus), बुध (Mercury) और रवि (Sun) के रूप में जानते हैं। उपर्युक्त क्रम में 'रवि' और पृथ्वी के उपग्रह 'सोम' की स्थिति परस्पर परिवर्तित करने से ग्रहों का यह क्रम पृथ्वी से देखने पर पृथ्वी के सुदूर ग्रह से गिनने पर यह क्रम निम्न प्रकार से होगा।
यथा शनि, बृहस्पति, मंगल, रवि, शुक्र, बुध एवं चन्द्र। 2
यदि किसी दिन सूर्योदय के समय पहली होरा (hour) शनि की हो, तो दूसरी होरा बृहस्पति की होगी, इसी प्रकार गणना चक्रीय क्रम में करते जायें तो दूसरे दिन सूर्योदय के समय रवि की होरा होगी। इसी प्रकार अगले दिन चन्द्र की, तत्पश्चात् इसी क्रम में अन्य ग्रहों की होरा स्थिति होगी। सूर्योदयकालिक घंटा (hour) जिस ग्रह के नाम होगा वही उस दिन का स्वामी होगा अर्थात् सात दिन का सप्ताह होगा एवं तत्पश्चात् शनिवार, रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार एवं शुक्रवार इसी चक्रीय क्रम 3 में दिनों के नाम निर्धारित होते रहेंगे।
अगले अनुभागों में नाक्षत्र दिन (Sidereal day) एवं सावनदिन (solar day) का विवचेन करेंगे।
नाक्षत्र दिन (Sidereal day) :
आर्यभट्ट 4 के अनुसार जैसे नाव पर बैठे व्यक्ति को नदी के किनारे स्थित स्थिर वस्तुओं को अपने सापेक्ष विपरीत दिशा में गतिशील दिखता है उसी प्रकार नक्षत्र (नक्षरति इति नक्षत्र: अर्थात् दो नक्षत्रों के मध्य की दूरी स्थिर रहती है।) गति करते दृष्टिगोचर होते हैं क्योंकि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती रहती है।
यद्यपि पृथ्वी का गोल सतत भ्रमणशील है परन्तु गणितीय सरलता के लिये इसकी गति को नक्षत्रों पर आरोपित करते हैं तथा पृथ्वी को स्थिर मानते हैं। 5
भारतीय ज्योतिष ने एक नक्षत्र के दुबारा उदय होने के बीच लगने वाले समय को एक नाक्षत्र दिन (sidereal day) के रूप में परिभाषित किया है। भौतिकी के अनुसार भी पृथ्वी अपने कक्ष के परित: समानकोणीय गति से भ्रमण करती है। अत: पृथ्वी के केन्द्र पर स्थित एवं पृथ्वी के साथ घूमने वाले दर्शक को नक्षत्र मंडल समान गति से भ्रमण करता दिखता है। पृथ्वी का अपने अक्ष के परित: एक चक्कर लगाने में लगने वाला समय एक नाक्षत्र दिन (Sidereal day) कहलाता है।
सावन दिन या कुदिन (Solar day):
यदि किसी विशेष दिन कोई ग्रह किसी नक्षत्र के साथ हो तो दूसरे दिन वह उस नक्षत्र से कुछ पूर्व की ओर हटा हुआ दिखता है। 6
अत: यदि ग्रह नक्षत्र के सापेक्ष एक चक्कर पूर्ण करता है तो ग्रह की कुल चक्करों की संख्या, नक्षत्र के चक्करों की संख्या से एक कम होगी। 7
सूर्य (या किसी ग्रह) को नक्षत्र मण्डल (भ-चक्र) पर एक चक्कर पूर्ण करने में लगने वाला काल सूर्य (सूर्य या किसी ग्रह) के लिए ''तत्सम्बन्धित वर्ष'' कहलाता है। सूर्य के लगातार दो उदयों के मध्य का काल सौर दिन (Solarday)क़हलाता है। ज्योतिष का मत है कि एक महायुग ४३,२०,००० सौर वर्ष 8 का होता है। उसी महायुग में १,५८,२२,३७,८२८ नाक्षत्र दिन 9 (Sidereal day) होते हैं। सौर दिनों की संख्या नाक्षत्र दिनों की संख्या से सौर वर्षों की संख्या घटाने पर प्राप्त होती है क्योंकि सूर्य प्रतिवर्ष एक चक्कर पूर्ण करता है।
अत: एक महायुग में सौर दिनों की संख्या = नाक्षत्र दिनों की संख्या - सौर वर्षो की संख्या
= १५८२२३७८२८ - ४३२००० = १५७७९१७८२८
अत: एक सौर वर्ष में सौर दिनों (दिन, घटी, पल) की संख्या
= १५७७९१७८२८ / ४३२०००
= ३६५.२५८७ = ३६५/१५/३० (दि०घ०प०)
= ३६५ १/४ सौर दिन
(Solarday)
इसी प्रकार, एक सौर वर्ष में नाक्षत्र दिनों की संख्या-
= १५८२२३७८२९ / ४३२००० = ३६६.२५८७ = ३६६/१५/३० (दि०घ०प०)
= ३६६ १/४ नाक्षत्र दिन।
अत: ३६५ १/४ सौर दिन = १ वर्ष = ३६६ १/४ नाक्षत्र दिन। 10
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References
1
सूर्य सिद्धान्त, मानाध्याय,(५०० ई. पू.)
"ब्राह्मं दिव्यं तथा पित्र्यं प्राजापत्यं च गौरवम्। सौर०च सावनं चान्द्रमार्क्षं मानानि वै नव।।१।।"
2
सूर्य सिद्धान्त, भूगोलाध्याय,
"तन्मध्ये भ्रमाणां भानामधोऽध: क्रमशस्तथा।।३०।।
मन्दामरेज्य भूपुत्र सूर्य शुक्रेन्दुजेन्दव:।।"
3
सूर्य सिद्धान्त, भूगोलाध्याय,
"मन्दादध:क्रमेण स्युस्चतुर्था दिवसाधिप:।।७८।।"
4
आर्यभट्ट, गोलपाद:, (५९९ ई.)
"अनुलोमगतिर्नौस्थ: पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्।
अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लंकायाम्।।"
5
सूर्य सिद्धान्त, भूगोलाध्याय, (५०० ई. पू.)
"मध्ये समन्ताद्दण्डस्य भूगोलो व्योम्नि तिष्ठति।
विभ्राण: परमांशक्ति ब्रह्मणो धारणात्मिकाम्।।३२।।"
6
सूर्य सिद्धान्त, मध्यमाधिकार, (५०० ई. पू.)
"प्राग्गतित्वमतस्तेषां भगणै: प्रत्यहं गति:।
परिणाहवशाद्भिन्ना तद्वशात् भानि भुञ्जते।।२६।।"
7
सूर्य सिद्धान्त, मध्यमाधिकार, (५०० ई. पू.)
''अत्रभोदयाभगणै: स्वै: स्वैरूना: स्व स्वोदया:।''
सूर्यसिद्धान्त, टीका,
''इत्युक्तेस्तु सर्वेषामेव ग्रहाणां सावन दिनानि स्वस्वोदयद्वयान्तर्गत कालात्मकानि भवन्ति, परञ्च तेषु सूर्यसम्बन्धि सावनानां परमोपयोगित्वात्सावन दिन शब्देनामी भूमी सावन वासरा एवं सर्वैगृह्यन्ते।''
8
सूर्य सिद्धान्त, मध्यमाधिकार, (५०० ई. पू.)
"युगे सूर्यज्ञशुक्राणां खचतुष्करदार्णवा।।२९।।"
9
सूर्य सिद्धान्त, मध्यमाधिकार, (५०० ई. पू.)
"भानामष्टाक्षि वस्वद्रित्रिद्विद्व्यष्टशरेन्दव:।
भोदयाभगणै: स्वै: स्वैरुना: स्वस्वोदया युगे।।३४।।"
10
C.J.L., Wagstaff, London (1934)
Chapter 'Time', last line. -The Properties of Matter
संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंञालय, भारत सरकार